सिविल सेवा क्या, क्यों और कैसे ?
भारत में सिविल सेवा की शुरुवात स्वतंत्रता पूर्व ब्रिटिश शासन के दौरान हुई । हालाँकि शुरुआत में सिविल सेवा में भारतीयो का प्रतिनिधत्व नहीं था , लेकिन समय के साथ सुधारात्मक कदम उठाते हुए ब्रिटिश शासन ने सिविल सेवा में भारतीयो का प्रवेश सुनिश्चित किया । तब से स्वतंत्रता के बाद तक शासन व्यवस्था में अनेक बदलाव हुए लेकिन सिविल सेवा जुड़े उत्तरदायित्व ,चुनौती और समाज में प्रतिष्ठा की वजह से सिविल सेवा के प्रति आज भी जबर्दस्त आकर्षण है । उदारीकृत अर्थव्यवस्था के शुरुआत के बाद निजी क्षेत्र में अनेक अवसर उपलब्ध होने के बाद भी सिविल सेवा में चुने जाने का सपना आज हर युवा की होती है , लेकिन क्या कारण है की लाखो छात्रो कि तैयारी करने और शामिल होने के बाद भी अंतिम रूप से कुछ ही छात्र सफल हो पाते है । इसका कारण यह है कि एक तो सीटो की संख्या सीमित है और प्रतिस्पर्धा ज्यादा है ।
सिविल सेवा परीक्षा
संघ लोक सेवाआयोग द्वारा सिविल सेवा की परीक्षा हर साल तीन चरणों में आयोजित की जाती है । तीनो चरणों ( प्रारंभिक परीक्षा , मुख्य परीक्षा और साक्षात्कार ) में सफल अभ्यर्थी की प्राथमिकता और वरीयता के हिसाब से आई.ए.एस. , आई.पी.एस. , आई.एफ.एस. , आई.आर.एस.तथा अन्य केंद्रीय सेवाओं के लिए चुना जाता है । अंतिम चयन में स्थान बनाने के लिए अभ्यर्थी को कड़ी मेहनत और नियमित अध्ययन की आवश्यकता होती है । चूँकि चुने जाने के बाद प्रशासनिक अधिकारी के तौर पर काम करना होता है तो आयोग ऐसे अभ्यर्थी को चुनने का प्रयास करता है जो पद की चुनौती और गरिमा के अनुकूल हो । द्वितीये प्रशासनिक आयोग के सिफारिश के बाद तो आयोग द्वारा पाठ्यक्रम में बड़ा बदलाव किया गया है ।आयोग ने यह बदलाव इस प्रकार से किया है कि अभ्यर्थी की परीक्षा सिविल सेवा में आनेवाले चुनातियों के हिसाब से शुरुआती चरण से ली जा सके ।