सामान्य अध्ययन ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम का (Sample Material)
विषय: भारतीय राजव्यवस्था एवं अभिशासन
अध्याय: भारतीय संघ का स्वरूप
भारतीय संविधान के किसी अन्य विषय पर शायद ही इतना अधिक वाद-विवाद रहा हो और इतने अधिक विरोधी मत व्यक्त किए गए हों, जितने मत भारत के संघीय स्वरूप के सम्बध में प्रतिपादित किए गए हैं। स्वयं संविधान-निर्मात्री सभा में इस बात पर मतभेद था कि भारतीय संविधान को संघात्मक संविधान कीं श्रेणी में रखा जाय या उसे एकात्मक संविधान की संज्ञा दी जाए। भारत का संविधान संघात्मक है अथवा एकात्मक, इस सम्बम्ध में मुख्य रूप से दो परस्पर विरोधी दृष्टिकोण पाए जाते हैं। संविधान-निर्मात्री सभा के कुछ सदस्यों ने जोरदार शब्दों में संविधान के एकात्मक होने का दावा किया था। सभा के एक सदस्य पी.टी, चाको ने कहा था कि संविधान निर्मात्री सभा ने जिस संविधान की रचना की है, वह देखने में तो संघात्मक है, लेकिन यथार्थ में वह एकात्मक है। एक अन्य सदस्य ने भारत को एक विकेन्द्रित एकात्मक राज्य की संज्ञा दी थी। संविधान निर्मात्री सभा के एक और सदस्य का कहना था कि संविधान ने एक प्रकार के फैड्रो यूनिटरी सिस्टम को जन्म दिया है जिसका अत्यधिक झुकाव एकात्मक शासन व्यवस्था की ओर है और घटक इकाइयां सदैव केन्द्र पर आश्रित रहेंगी।
उपर्युक्त दृष्टिकोण के विपरीत संविधान निर्मात्री सभा के काफी सदस्यों का यह मत था कि भारत का संविधान संघात्मक हैं।
संविधान प्रारूप समिति के अध्यक्ष डाक्टर बी.आर. अम्बेडकर ने इस विषय पर विचार करते हुए कहा था कि रह एक संघीय संविधान है, क्योंकि यह दोहरे शासनतंत्र की स्थापना करता है, जिसमें केन्द्र में संघीय सरकार तथा उसके चारों ओर परिधि में राज्य सरकारें हैं जो (सरकारे) संविधान द्वारा निर्धारित निश्चित क्षेत्रों में सर्वोच्च सत्ता का प्रयोग करती हैं। संविधान निर्मात्री सभा के एक सदस्य टी. टी. कृष्णमचारी ने इस बात पर बल दिया था कि यह निस्संदेह एक संघीय संविधान है।